किडनी, शरीर के दोनों भागों में स्थित दो बीन के आकार के अंग होते हैं जो रिब केज के ठीक नीचे पाए जाते हैं , इनका मुख्य काम ख़राब उत्पादों को खून से फ़िल्टर कर के मूत्र में परिवर्तित करना है।यदि किडनी इस क्षमता को खो देती हैं तो ख़राब उत्पाद निर्मित हो सकते हैं, जो संभावित रूप से खतरनाक साबित हो सकते है इसी के साथ साथ ही जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए Best Nephrologist In Bhopal से सलाह ले सकते हैं
किडनी के क्रियाकलाप में कमी या हानि को एंड स्टेज क्रोनिक किडनी डिजीज या किडनी की विफलता के रूप में जाना जाता है, जो कि किडनी ट्रांसप्लांट का सबसे सामान्य कारण है।प्रत्यारोपण के समय पर नई किडनी पेट के निचले हिस्से में लगाई जाती है। नई किडनी की रक्तवाहिकाएं पेट के निचले भाग में पाई जाने वाली रक्त वाहिकाओं से जोड़ी जाती हैं। नई किडनी की मूत्रवाहिका को मूत्राशय से जोड़ दिया जाता है,एक किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी सामान्य रूप से तीन से चार घंटे में की जाती है। किडनी द्वारा की जाने वाली क्रियाओं को डायलिसिस नामक ब्लड फ़िल्टरिंग प्रक्रिया का उपयोग करके फिर से दोहराना संभव होता है लेकिन डायलिसिस की प्रक्रिया असुविधाजनक और बहुत समय लेने वाली हो सकती है, इसलिए एंड स्टेज क्रोनिक किडनी डिजीज के लिए किडनी ट्रांसप्लांट, जब भी संभव हो, बेहतर उपचार है।
किडनी ट्रांसप्लांट में एक स्वस्थ व्यक्ति से उसकी एक किडनी लेकर वह सर्जरी के माध्यम से मरीज के शरीर में लगाई जाती है। यह किडनी किसी मरा हुआ या जीवित व्यक्ति की हो सकती है। इसके अलावा जो व्यक्ति किडनी देते हैं वे एक स्वस्थ किडनी के साथ भी सुखी जीवन जी सकते हैं।
किडनी की खराबी के चरणों का अंतिम यानि पाँचवे चरण में जब किडनी विफलता की बीमारी के कारण रक्त में विभिन्न विषाक्त पदार्थों और अपशिष्ट उत्पादों का निर्माण हो जाता है, जो मरीज के लिए अस्वस्थता और मृत्यु का कारण बन सकता है। इस चरण में आने के बाद मरीज को किडनी ट्रांसप्लांट यानि किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है। किडनी विशेषज्ञ (Kidney Doctor In Bhopal) के अनुसार अंतिम चरण के मरीजों के लिए किडनी प्रत्यारोपण डायलिसिस से बेहतर उपाय है। किडनी प्रत्यारोपण मरीज की जीवनशैली को बेहतर बनाता है साथ ही डायलिसिस के दुष्प्रभावों से बचने में मदद करता है। इसके अलावा अगर मरीज किसी कारणवश प्रत्यारोपण नहीं करा सकता तो डायलिसिस ही बेहतर उपाय है।
किडनी प्रत्यारोपण के बाद, मरीज की प्रत्यारोपित किडनी उसके रक्त को साफ करने में फिर से सक्षम हो जाती है। पहले से डायलिसिस (Dialysis) पर रह रहे मरीजों के लिए यह एक बहुत अच्छा विकल्प होता क्योंकि इसके बाद उन्हें डायलिसिस की जरूरत नहीं होती। हीमोडायलिसिस (Hemodialysis) और पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal dialysis) — दोनों के मरीजों में किडनी प्रत्यारोपण फ़ायदेमंद होता है। लेकिन यह समझना भी जरूरी है कि किडनी प्रत्यारोपण एक जटिल और महत्वपूर्ण सर्जरी है। ऐसी किसी भी सर्जरी की सफलता दर 100% नहीं होती है। जबकि सर्जरी के तुरंत बाद अगर देखा जाए तो सफलता की दर 98-99% से भी काफी अधिक होती है। साथ ही किडनी प्रत्यारोपण सर्जरी की एक साल की सफलता दर इस बात पर भी निर्भर करती है कि आपका किडनी डोनर जीवित था या मृत। यदि दाता जीवित है, तो सर्जरी की सफलता दर 90-95% होगी यदि मृत है तो सफलता दर 85-90% होगी।